Friday, December 25, 2009

एक अनकहा ख़त


हेलो रुचिका
मै नहीं जानता तुम मेरे बारे में कभी सोचती भी हो या नहीं पर मेरे दिल में एक तुम्हारा ही नाम गूंजता रहता है| मुझे पता है तुम यही सोच रही होगी की ये सब बनी बने बाते है पर सच पूछो तो पहले मै भी यही सबके बारे में सोचता था पर जब खुद के दिल के तार बज उठे तब महसूस हुआ की ये छोटा सा मासूम दिल क्यों कभी कभी कुछ तेज धड़कने लगता है| यार रूचि मै नहीं जानता की मै तुम्हे कभी प्रपोज कर पाऊंगा या नहीं या मेरी ये अनकही एकतरफा LOVESTORY मेरी DAIRY के इन पन्नों में ही दफ़न हो जाएगी पर जिंदगी से इतना जरूर चाहूँगा की एक बार तुमसे जी भर के बातें करूं|
तुम्हे न पाने का दर्द मेरे सूने दिल में साफ़ नजर आता है| तुमसे बहुत दूर हूँ और तुम्हारी यादें दिल में टीस पैदा करती है लेकिन फिर ख्याल आता है की इन यादों में ही तो प्रेम की धारा भी बहती है|

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