Saturday, October 29, 2011

प्रकृति से वैर

चित्रकूट भगवन राम की कर्मस्थली एवं हिन्दुधर्म का एक पूज्यनीय तीर्थस्थल है! यहाँ कल्लोल करती माँ मन्दाकिनी का पवन तट है, विध्याचल पर्वत माला की श्रंखलायें है सीधे शब्दों में कहें तो प्रकृति और आस्था का अनूठा संगम है चित्रकूट! परन्तु पिछले कुछ वर्षों से आस्था प्रकृति के ऊपर कुछ ज्यादा ही हावी हो गयी है! 
चित्रकूट में प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु आते है सभी प्रभु कामतानाथ के दर्शन पाकर कृतकृत्य होकर जाते है और बदले में कामतानाथ जी को पोलीथिन आदि ढेर सारी गन्दगी दे कर जाते है साथ ही यहाँ के प्राकृतिक वातावरण से छेड़खानी भी करके जाते है! 
      चित्रकूट के बारे में जानने वालों को पता होगा की यहाँ संतों का काफी बड़ा जमवाडा है, इन श्रधालुओं में एक बड़ा वर्ग इन संतों का शिष्य समूह रहता है! अगर ये संत अपने इन शिष्यों को धार्मिक उपदेशों से इतर समाज एवं पर्यावरण के प्रति भी सचेत अथवा जागरूक बनाने का प्रयास करेंगे तो तो उनकी बातों का हो सकता है उन शिष्यों पर ज्यादा प्रभाव होगा! साथ ही अपने शिष्यों को वृक्ष लगाने, गन्दगी न फ़ैलाने, व पोलीथिन का प्रयोग न करने के लिए प्रेरित करे, नदियों में अस्थिफूल व हवन की राख वगैरह न फेंकें लोग पर्यावरण के महत्व को समझे इसके लिए इन बातों को अपने प्रवचन में शामिल करें! लोगों को समझाएं की प्रकृति से वैर किये बिना ही अपने कार्य व धार्मिक अनुष्ठान पूरे करें! पोलीथिन की जगह कपडे, कागज व जूट वगैरह के बैग प्रयोग करें!
                    वास्तव में चित्रकूट तो एक उदहारण है,पर्यावरण के प्रति लापरवाही हमारे देश के नागरिकों की एक बड़ी समस्या है! लोग पर्यावरण के की सुरक्षा को नज़रन्दाज करते है जबकि उनकी स्वयं पूरी जिंदगी प्रकृति के इर्द गिर्द ही बीतती है! जब हम प्रकृति के सहारे ही जी रहे है तो उससे वैर क्यों? प्रकृति से वैर के नतीजे देर सवेर हमे भुगतने ही होंगे अतः उससे प्यार करना सीखिए!
          तो आइये आज ही हम सभी पर्यावरण की सुरक्षा का संकल्प ले और उस पर पूरी ईमानदारी से अमल करें   ताकि हम अपनी उस भावी पीढ़ी को एक खुबसूरत, साफ सुथरा व स्वस्थ भविष्य दे जो यही पास वाली गली लुका छिपी खेल रहे है!
आइये हम सभी भारतीय शपथ ले की हम अपने देश को पुनः खुबसूरत व हरा भरा बनायेंगे! हम अपने  अधिकारों के साथ साथ अपने कर्तव्यों के प्रति भी जिम्मेदार बनेंगे!
                                                     जय हिंद, जय भारत