Thursday, November 24, 2011

कहानी हमारी और हमारे देश की-१

 किसी भी देश और समाज के विकास के लिए साथ वर्ष का समय कम नहीं होता है! इतने ही समय में चीन और द्वितीय विश्वयुद्ध में तबाह होने वाले जापान और जर्मनी जैसे देशों ने आर्थिक और तकनीकी क्षेत्रों में अपने को इस लायक बना लिया है की उन्हें दूसरों के आगे हाथ पसारने की जरुरत नहीं है ! ऐसे में जब हम अपने देश के स्वातंत्र्योत्तर काल के साथ वर्षों के दौरान हुए विकास कार्यों का आकलन करते है तो काफी निराश होना पड़ता है साथ ही यह भी महसूस होता है की १८५६ ई० में ब्रिटिश दासता से देश को मुक्त करने का जो अभियान शुरू होकर १९४७ ई० तक चला उसमे शामिल होकर फांसी में लटकने वालों, गोलियां खाने वालों या सत्याग्रह पथ का अनुगमन करते हुए वर्षों तक जेल की यातना भोगने वालों की जो सोच और और सपने थे इन साथ वर्षों में उनसे  विपरीत दिशा में यह भारत जा खड़ा हुआ है!
                      कौन जिम्मेदार है इसके लिए हम या हमारी सरकार? आप नहीं बोलेंगे क्योकि इसके लिए हम ही जिम्मेदार है, क्योकि हम हमेशा से यही सोचते आये है की यह जिम्मेदारी तो सरकार की है, लेकिन यकीन मानिये इन सारे विकास कार्यों में जितने भूमिका सरकार की बनती है उससे कही ज्यादा हमारी! 
           चलिए एक बार आपका कहा मन लेते है की ये सारी जिम्मेदारियां सरकार की है पर ऐसी सरकार का चुनाव किसने किया है जिसके शाषणकाल में हमे देशहित के लिए जरुरी जन लोकपाल, राईट टु रिजेक्ट जैसे कानूनों को लागु करवाने के लिए धरना प्रदर्शन, अनशन और आन्दोलन करना पड़ता है! फिर भी हमारी जायज मांगों का जवाब हमे पुलिस की लाठियों से दिया जाता है ?
              जवाब हम खुद है क्योकि हमने ही चुनी है यह भ्रष्ट और तानाशाह सरकार! कैसे चुनी यह सरकार इसकी कहानी सुनिए , हमारे क्षेत्र के एक जन प्रतिनिधि है जो की इमानदार और बेहद ही साफ सुथरी छवि वाले है वो एक प्रतिष्ठित पार्टी से भी है और हम ये भी मानते है की वो ही इस पद के लायक है परन्तु उनके विपक्षी हमारे चाचा ,मामा या मित्र निकल आते है तो हम अपना मत किसे देते है? ईमानदार को ? नहीं हम अपना मत अपने मामा को चाचा को है ना! क्यों करते है हम ऐसा? क्योकि जब हमे ठेके लेने होते है मामा या चाचा ही हमरे लिए सिफारिश करेगा ईमानदार प्रतिनिधि नहीं या जब अवैध खनिज के साथ हमारी गाड़ी पकड़ी जाती है तो वाहन परिचालन अधिकारी को हमारी गाड़ी छड़ने के लिए फोने कौन करेगा ...हमारा चाचा या मामा या फिर जब हम किसी महिला के यौन उत्पीडन जैसे केसों में फसेंगे तो पुलिस हमें हाथ भी नहीं लगाएगी क्योकि पुलिस अधीक्षक और पुलिस कमिश्नर हमारे मामा या चाचा का हुक्म बजाते है!
          सच पूछिये तो हमारे देश के इस पतन के लिए हम ही जिम्मेदार है क्योकि हम सच से डरते है और सच यह है की हमारे देश में भ्रष्टाचार में आम नागरिक से लेकर मंत्रियो की फ़ौज तक सभी गले तक दुबे है! सच यह है की आज भी हमारे देश में उतनी ही आर्थिक विषमता है जितनी ६० साल पहले! सच यह है की एक फार्मूला ट्रैक बन जाने और उसमे रेस के सफल आयोजन हो जाने भर से हम विकसित देशो की कतार में नहीं है सच यह है की हम आज भी कर्तव्यों से ज्यादा अधिकारों को महत्व देते है सच यह है की हमें अब आज़ादी पाने के लिए चुकाई गयी कीमत का भान नहीं रहा! सच यह है की हम आज भी प्रतिभाओं का पलायन नहीं रोक पाए है! सच यह है की हमे आज भी तकनीकी के क्षेत्र में रूस व अमेरिका के सामने हाथ पसारने पड़ते है! सच यह है की हम अपनी संस्कृति व भाषा का सम्मान करना ही भूल गए है और सबसे बड़ा सच यह है की हम इस सच का सामना करने से डरते है! मेरी बात मानिये अब इस सच से डरना बंद करिए और उसका सामना कीजिये! ये हमारा देश है और इसे हमे ही बनाना है, इसे कैसे चलाना है ये हम तय करेंगे  गाँधी परिवार, ओबामा को सिखाने की जरुरत नहीं है! 
      हमे इसे भ्रष्टाचार मुक्त, तकनीकी युक्त, व आर्थिक विषमता से दूर एक संपन्न राष्ट्र बनाना है 
मै तो तैयार हू इस कडवे सच का सामना करने के लिए , क्या आप है ?...........................................
                                                                जय हिंद जय भारत 
                                                                      वन्दे मातरम